सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

ankahi


अनकही-1
असलीयत में वो चाहता क्या था ६-७ महीनों से मैं ये समझ नहीं पा रही थी ,हजारों मील दूर था वो दोस्ती तो नाम मात्र की रह गई थी तो क्योँ वो रह रह कर किसी सुहानी हवा के झोंके की तरहां बार बार मेरे दर पर दस्तक देता था मिलना कुछ था नहीं कुछ महीनों के रिश्ते मैं एक दुसरे को देखा तक नहीं सिर्फ समझने की कोशिश मैं दोस्ती जैसा खुबसूरत सा रिश्ता तो पहले ही ख़त्म कर चुके थे .
निमित तो पहले ही स्पष्ट कर चूका था की अगर एक साफ़ सुथरे रिश्ते के अलावा कोई और रिश्ता रखना होता तो क्या उसके शहर में लड़कियों की कमी तो नहीं थी फिर क्यूँ वो मुझ जैसी लड़की को अपने हमसफ़र समझना चाहता है ,ऐसी लड़की जिसे कोई प्यार तो दूर देखना भी पसंद नहीं करता ,वो हमेशा कहता था मनाली मैं भी नहीं जानता की तेरे मैं वो न जाने क्या बात है जो तू मेरे दिल दिमाग से जाती ही नहीं कितनी कोशिशें की तू सोच जरा समझ मैं नहीं रह सकता तेरे बिन मैं नहीं रह सकता , तुनेना जाने क्या जादू कर रखा है ....हुह जादू जो सिर्फ भ्रम होता है आँखों का ,मनाली के लिए सब पहली बार था कभी कभी लगता की ये सिर्फ मुझे बहलाने फुसलाने के लिए तो नहीं , 4 महीनों से जब से दोनों ने अपना पल दो पल का साथ छोड़ा तब से मनाली का दिल कुछ कहता और दिमाग कुछ और समझता और ये जायज भी था निमित की भी तो हरकतें कुछ और हरकत पेश होती और ज़बान न जाने क्या कहना चाहती थी 4 महीने पहले जब वो अलग हुए तो मनाली के लिए तो दुनिया संसार ख़त्म होने जैसा था ,निमित का तो हाल क्या था वो जानना तो चाहती थी फिर २ पल मैं ही अपने आप से कह देती भाड़मैं जाए हाल अच ही होगा आखिर मेरा से उसका पीछा तो छुट ही गया अब तो और जश्न मन रहा होगा अपने दोस्तों संग नयी हमसफ़र के संग पर ये तो उसका दिल नहीं बोल रहा था दिल को तो वो बेजान समझने लगी थी जो सिर्फ उसे जीने मैं मदद कर रहा था ये जीना क्या जीना था . एक निमित ही तो था जो उसे समझता था उसके अलावा था ही कोण और अब तो वो भी नहीं था ,कुछ दिन बाद पता चला की वो उसके शहर से गुजरा था वो दिन कोई और नहीं पर उनके रिश्ते की पहली सालगिरह का था जो मनाली के लिए बेहद मायने रखता था वो बेचारी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी आखिरी बार निमित ने ये जो कह दिया था की वो अब कभी बात नहीं कर पायेगा उससे ,कभी कभी मुझे लगता की हमारा रिश्ता ख़त्म हुआ तो वो मेरी गलतियों के कारण मैंने सेकड़ों बार पुचा था निमित से की मेरी गलती तो बताओ तो वो बस ये कह देता न तेरी कोई गलती नहीं है रे बस हम इतने दूर हैं कैसे चलेगा ये रिश्ता मैं कहती दूर कहाँ हैं हम सिर्फ ये कुछ हज़ार फासले तो तय नहीं करेंगे न हमारे रिश्ते की दुरी को हमारा मन तो करीब है न पर सब सिर्फ कह देने भर से क्या होता है गलत तो निमित भी नहीं था कोण हाँ भरता ऐसे रिश्ते को मैं पापा मम्मी से बोल भी देती पर लड़का जब सामने लाना होता तो क्या कहती की आज तक मैंने एक झलक भी नहीं देखी है ,पागलपन होता मेरा ..,मैं छाती थी चलो कमसे कम वो एक दोस्त की तरह भी तो रह सकता था मेरी ज़िन्दगी में पर मुमकिन नहीं था ऐसा निमित का मानना था खैर. खैर अब मैं बीते समय को एक सबक की तरह लेती हूँ , शायद ये मेरी समझदारी है ,दिन बीत ते चले और मनाली ने अपने को पढाई और काम मैं झोंक दिया ठान ली थी उसने बहुत बड़ा बन न है साथ ही दिल के किसी कोने में बेठी उम्मीद हर सुबह और दिन ढलने पर ये कहता की वो आयेगा मेरे ज़िन्दगी मे ...पता नहीं उसका दिल सही था या गलत वो तो दिन रात अपने आप को कोसती..
    आज मनाली खुश थी उसकी सब से खास सहेली का अपनी नयी दुनिया में जाने का दिन था वो भी नए साल मैं और इसी के साथ वो पुरानी यादों को बीते साल के साथ भुला देना चाहती थी अभी 2 फेरे हुए ही थे की अचानक फ़ोन बजा मैंने सोचा मम्मी होगी पूछ रही होगी की मैं सही सलामत हूँ की नहीं अब रात बिरात का मामला था तो ज़ाहिर सी बात थी पर ये क्या निमित का फ़ोन ये तो उम्मीद ही न थी मनाली को ......
(आगे का किस्सा शेष भाग में ....)

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