अनकही -2
दिल तो ये मनाली का भी जानता था की
कभी न कभी निमित उसे फोन जरुर करेगा पर उम्मीद कम ही थी ..बड़ी हिच्किचाहट से फ़ोन
उठाया मनाली ने “हेलो”.. “मनाली हाय हैप्पी न्यू इयर”.. “आज कैसे फ़ोन किया क्या
हुआ कुछ रहगया था क्या कहना सुनना” मनाली ने जान भूझ कर कठोरता से बात की | “नहीं
मनाली विश करने के लिए फ़ोन किया था”.. “हम्म तुमको भी हैप्पी न्यू इयर”.. “मनाली
बीते साल मैं जो कुछ भी किया मुझे उसका पश्चाताप है माफ़ी मांगना चाहता था ई एम्
सॉरी फॉर आल”.. “अब क्या मतलब है इन सब का निमित सब कुछ तो ख़त्म हो गया है रही
क्या गया है...और माफ़ी वगेरा मांगने का ये कौन सा समय है..” “सुन देख मुझे नहीं
पता तुझे मेरा फोन करना सही लगा या नहीं पर मुझे लगा की मुझे तेरे से माफ़ी मांगनी
चाहिये”.. मनाली को गुस्सा आया मन ही मन में बोलने लगी “बोल तो ऐसे रहा है जैसे
एहसान करने के लिए फ़ोन किया हो”.. पर वो जानती थी की ये हमेशा से ऐसे ही रहा है
कभी नहीं सुधरेगा आखिर 4 सालों से जानती हूँ एक वक़्त था जब हम दोस्त हुआ करते थे
पक्के वाले वो भी हर बात एक दुसरे से कहते थे अरे इस भुधू को लड़कियां पटाने के टिप
कौन\ देता था तो क्या इतना भी नहीं जानुंगी इससे.. “हाँ ठीक है वैसे भी मैं कोई
नया ड्रामा नहीं खड़ा करना चाहती हूँ बहुत खुश हूँ मैं इसलिए नहीं की तुमने फोन
किया इसलिए की मेरी सहेली की शादी है ..” “अच्छा कौन वही जिसने मुझे इतनी डांट
लगाईं थी” निमित ने मनाली का मूड बदलना चाहा .. “हाँ हाँ वही पता है फेरे चल रहे
हैं”.. चाय का प्याला पकडे हरे पिस्ते रंग की साडी में लिपटी साल की सबसे सर्द
रातों में वो मैरीज गार्डन मेंलगे मंडप के पास कड़ी बात करने लगी |
“तो अब अपनी आदतें सुधारी है या
वैसे ही हो अब तक”.. “कहाँ तुझे लगता है मैं बदलूँगा”.. “न लक्षण तो नहीं दिखते एक
मिनिट आज तो 31 फर्स्ट की रात है ना और तुम अपनी पार्टी में नहीं गए”.. “नहीं वो
ऐसे ही.... सोचा आज नया साल तेरे साथ बिताऊ”... इतना कहा ही था की फेरों में बैठी
सहेली ने एसा भाव दिया की मनाली निमित की बात कटते हुए बोल उठी “अच्छा सुनो सुनो
मुझे ना जाना है मेरी फ्रेंड बुला रहे है मैं जल्दी ही टाइम मिलते ही फ़ोन करुँगी
तुम वैसे भी जगे हुए हो”...”हाँ रे तू जा आराम से मेरी तरफ से विश करना और..” और
तो वो कुछ कहता पर मनाली जल्दी में फ़ोन रख चुकी थी ... नए साल की वो रात न जाने इन
दोनों किओ जींदगी में क्या नया लेकर आई थी वो रात कोई नहीं जानता था ..| आज भी वो
हजारों मील दूर थे मिले नहीं थे पर एक दुसरे को ऐसे जानते थे जैसे जन्मों जन्मों
का साथ रहा था उनका , सहेली की विदाई हो गई अकेली रह गई थी मनाली और उसके चन्द
किस्से ओ किसे सुनती अब उसे अपने आपकी सहेली बनना था|
अगले दिन सुबह एक नया दिन नया साल
शायद नए जीवन की शुरुआत ...आखीर मनाली ने फ़ोन किया “तो मैडम हो गई शादी हाँ तो तू
कब कर रही है”.. मेरी शादी मैं वक़्त है निमित पता नहीं होगी या नहीं... अच्छा वैसे
तुम कब कर रहे हो”... “तू हाँ कर दे तो अभी कर लूँग”...ये क्या कह गया था निमित
क्या मजाक था क्या था क्या ये मन में ख़ुशी थी पर गुस्सा भी ये भी ना क्यों ऐसी बात
कह जाता है की ये मन बहक जाए और दुनिया भर का जो गुस्सा होता है सब हवा कर देता है
...एक दिन मैंने कहा “निमित पापा मम्मी मेरी शादी की बात कर रहे थे”.. इतना कहा ही
था की निमित को गुस्सा आया और कहा “चुप एक
दम चुप कुछ और बोल”...ये तो नहीं सोचा था मैंने क्या ये प्यार था जो वो अपने अन्दर
दबा रहा था या कुछ और आज तक मैं समझ नहीं सकी हूँ
दिन बित ते गए कभी कभी बात कर ते हम
कभी पुराने दिनों की तरह ऑनलाइन ही बड़ा अजीब सा रिश्ता हो चला था हमारा,.. अब
पुराने दोस्त थे हम वही जैसे 4 साल पुराने
थे एक अलग रूमानियत थी एक दुसरे की परवाह तो थी पर फॉर्मेलिटी भी तीखी मिर्च की
तरह कूट कूट के भरी हुई थी | दोनों न आगे बढ़ पाए न मुड पाए थम सा गया था पल एक
अनकही ख़ामोशी थी जो कुछ कहना चाहती थी एक दूजे से मनाली छोड़ न पुरानी बात को चल एक
हो जायँ... निमित चलो न कहीं दूर दुनिया बसा लें थोड़ी नौक झोंक ढेर सारा प्यार और
बस तुम और मैं.... पर अब हालत वो कहाँ थे हम तो नस साथ रहना कहते थे एक दूजे को
समझना चाहते थे चाहे हमसफ़र की तरह या दोस्त की तरह कम से कम एक साथ तो थे .....
-तरन्नुम