मंगलवार, 26 अगस्त 2014

रात

रात
ऐ रात तू हर रोज़ न आया कर
अब तू एक सज़ा है ,
तुझे देख आह भारती थी
पर अब तू एक ज़ख्म है...

ऐ रात तू हर रोज़ न आया कर
अब तू एक फ़साना है ,
तुझे अपना माना करती थी
पर अब तू पराया है...

ऐ रात तू हर रोज़ न आया कर
अब तू बीता हुआ अरसा है,
तू मेरा हमसफ़र था
पर अब तू ख्वाब है...

ऐ रात तू हर रोज़ न आया कर
अब तू कुछ भी नहीं है,
तू मेरा नामाबर था

पर अब तू खामोश  है